बुधवार, 21 जनवरी 2009

शब्द- अर्थों मैं बदले ,या अर्थों के पहाड़ बने,

शब्द अर्थों में बदले या अर्थों के पहाड़ बने ,
फर्क नही पड़ता,
कभी - कभी शब्दों अर्थों की बात,
फिजूल लगती है
शिखर पर नही जाना मुझे....
आओ ढूँढ निकालें महा समुद्र,
सीपियों,शंखों सुनहरी मछलियों,मोतियों वाला...
(उस दिन कितने पत्ते झड़े थे, जब जाते हुए देखा था -तुम्हे मैंने मोड़ से मुड़ते हुए ...
अपनी ही कविता का एक अंश)

16 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

vidhu jee bahut sundar likha hai


---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

"अर्श" ने कहा…

EK AJIB SI BAAT DIKHI IS LEKH ME SAMAJH NAHI PA RAHA HUN SHYAD MAIN DHUNDH NAHI PA RAHA YA BYAKT NAHI KAR PA RAHA ..... DHERO BADHAI AAPKO...


ARSH

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने शब्द- अर्थों मैं बदले ,या अर्थों के पहाड़ बने,....
सच मै कभी कभी गलत अर्थ भी एक बड पहाद खदा कर देता है.
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

Vidhuji, Bahut Sundar Abivyakti hai

विष्णु बैरागी ने कहा…

बात तो वही जो बोले बिना ककही और सुनी जाए। यही कहा आपने। बहुत ही सुन्‍दर तरीके से।

Udan Tashtari ने कहा…

बेहद उम्दा प्रस्तुति!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

शब्दों के अर्थ की बात फिजूल नही लगनी चाहिए ,शब्द तो बिना अर्थ के निर्जीव है /रचना की आखिरी लाइन और प्रस्तुत चित्र का सामंजस्य सुंदर बन पड़ा है

makrand ने कहा…

bahut sunder rachana

डॉ .अनुराग ने कहा…

बेमिसाल !

विधुल्लता ने कहा…

vinay ji arsh ji,raaj bhatiya ji,tarun ji,vishnu bairaagi ji,sameer ji,brijmohan shirivaastava ji,makrand avam anuraag ji....aap sabhi kaa dhanyvaad...

रंजू भाटिया ने कहा…

(उस दिन कितने पत्ते झड़े थे, जब जाते हुए देखा था -तुम्हे मैंने मोड़ से मुड़ते हुए )
बहुत सुंदर गहरी अभिव्यक्ति है इन में ...सुंदर

अवाम ने कहा…

sundar rachana..

shivraj gujar ने कहा…

bahut hi badiya. in laino ko padne ke baad to yah poori kavita padne ki ichha man main kulbulane lagi hai. padvaiye na agli baar.

Akanksha Yadav ने कहा…

सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

daanish ने कहा…

कभी कभी शब्दों अर्थों की बात
फिज़ूल सी लगती है ....

मन के अन्दर कहीं गहरे सच का
सच्चा इज़हार .. . . .
बेहतर लफ्ज़, बेहतर तरतीब और
बेहतर नज़्म . . . . .!
बधाई .............!!
---मुफलिस---

vandana gupta ने कहा…

kavita ke ansh mein hi bahut kuch kah diya..........poori kavita kab padhvayengi.