मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

जंगल की याद मैं,चट्टानों के प्रेम मैं ..जहाँ से लौटकर गैर मामूली इच्छाएं विस्मित करती है एक रिपोतार्ज यात्रा चित्र..

उस मोड़ पर आकर /खुलता है रास्ता/जहाँ से आगे सारे रास्ते/बीहड़ जंगलों की ओर लौट तें हैं/भीम बेठिका मैं/जिसकी पगडण्डी बनी है /पथरीली चट्टानों के बीच से /जहाँ पहुंचकर फिर कई छोटे रास्ते मिलते हैं /भीम बैठिका कोई मिथ है /या कोई सूत्र जरूर है /कहा भी ओर माना भी जाता है/वीतरागी भीम ने यहाँ तपस्या की थी /जिसकी अनिवार्य उपस्थिति यहाँ दर्ज ओर चिन्हित है/छोटे-छोटे रास्ते धीरे-धीरे ऊपर उठते है/आकाश की ऊंचाई मैं बाहें फेलाए /आतुर/ऊंचाई पर जाकरएक तरफ/ज्यादा हरा थोडा कम सूखा/समतल मैदान मिलता है /पहाडियों के नीचे आराम से पसरा-फैला /दूर तक /जिसके सामने हैं/नुकीली-दरकी हुई ठोस चट्टाने/जिन्हें छूकर लौट तें हैं बार-बार/महुए ओर शाल वृक्ष के तार-तार हुए पत्तों की /जंगली हवाओं की कसैली गंध/जिनके साथ-समग्र-सघन/कहीं दूर अधूरे सपने कौंध जाते हैं/ बिछुडी स्म्रतियों मैं /चट्टानों के शिखर पर /भीम काय तपस्वी भीम कदाचित आपको रोमांचित करे/पौराणिक कथा नायिका द्रोपदी-पांचाली/चट्टानों के पीछे से /झांकती/इतिहास पलटती /पत्तों के मौन मैं /कभी खड़ ख्डातीतो कभी सुबकती है /दो ऊँची चट्टानों के बीच /झांकते नीले आकाश से/लौटती एक जंगली कबूतरी/चट्टानों के खोह से /अपने नन्हे बच्चों के साथ /दुःख-सुख भोर-अन्धकार के सच मैं/ एक विषम मैं /समय करवटें बदलता है/जहाँ से लौटकर गैर मामूली इच्छाएं विस्मित करती हैं/चट्टानों का बेबाक खरापन भी अभिभूत करता है /पलाश के गठीले खुरदरे तने वालें पेडों पर/ठहरे हुए मौसम /टेसू चटकने का अनंत से बाट जोह्ते/आंखों मैं भरता समूचा जंगल/जंगली फलों से लदे पेड़/बारम्बार/खामोशी से खड़े हो जातें हैं/संवेदनाये बदलती हैं/आकारों मैं/शेल चित्रों से बाहर निकल /यात्राओं के अंत ओर मोडों वाले रास्तों पर/कोई तो है /जो मुनादी करता है/सुनो- रुको,रुको-सुनो/चट्टानों के सीने से लिपटे पेड़/बेशक सघन एकांत मैं/प्रेम की तल्लीनता मैं /थोडा सकुचाते-शर्माते हुए /बेमानी लगती है /जाने क्यों सारी दुनिया /चट्टान के आखरी सिरे पर बिना मिटटी के पनपा पेड़/ सच कितना द्रवित किया होगा/इन पत्थरों को /सोचती हूँ/रास्ते लौटा तें हैं /सार्थक उदासी मैं /घर की तरफ/धानी दुपट्टे के कोने मैं लिपटा चला आता है/ कोई जंगली फूल/आत्मा उड़ान भरती है/पहुँचती है/जहाँ दुबके बैठे है /पंखों के नीचे /कबूतरी के बच्चे /सुखद गर्माहट मैं/
श्री वाकणकर प्रसिद्ध पुरात्तव वेत्ता की याद मैं ..जिन्होंने भीम बैठिका के दुर्लभ शेल चित्रों की खोज की ...भोपाल से ४० किलोमीटर की दूरी पर स्थित ,वर्ल्ड हेरिटेज दर्जा प्राप्त भीम बैठिका से लौट कर....

17 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

आपका लिखने का अंदाज अलग \अच्छा लगा

डॉ .अनुराग ने कहा…

शब्द शब्द .....शब्द .......जैसे ख़ुद कितने ताने बाने बुने हो इन्होने ......फ़िर एक खूबसूरत सा शब्द जाल .......हमेशा की तरह .बेमिसाल

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

लाजवाब !

Pratyaksha ने कहा…

सुंदर मोंताज़ ..

श्रुति अग्रवाल ने कहा…

बहुत समय बाद एक खूबसूरत रिपोतार्ज पढ़ा...बोलचाल की भाषा का उपयोग करते करते रिपोतार्ज के जरिए अपनी भावनाएँ व्यक्त करना शायद कुछ भूल सी गई थी...आपने दिमाग की कुछ परतों को कुरेद कर काफी कुछ याद दिला दिया। बेहद खूबसूरत यात्रा चित्रण....

समयचक्र ने कहा…

लाजवाब खूबसूरत शब्द जाल.खूबसूरत यात्रा चित्रण.

Doobe ji ने कहा…

vidhu ji sadar namaskar blog par tippani ke liye dhanyawad apka blog dekne ka saubhagya mila acha laga aab regular visit karta rahunga

vangmyapatrika ने कहा…

खूबसूरत यात्रा चित्रण .अच्छा लगा.

Vinay ने कहा…

जी सर्वोत्तम, अब तो आना जाना लगा रहेगा


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http://prajapativinay.blogspot.com/

एस. बी. सिंह ने कहा…

सुंदर आलेख

Bahadur Patel ने कहा…

bahut achchha yatra vrtant hai.

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप के शव्दो नए जंगल को भी एक सुंदर रंग दे दिया, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

आप बहुत ज्ञानी हो....
ऐसा लगा पढ़कर जैसे जिंदगी प्रकति की गोद मे जीवन व्यतीत कर रही है.......

अक्षय-मन

Smart Indian ने कहा…

जितनी सुंदर पोस्ट उतने ही मनभावन और मौलिक चित्र भी. सुंदर, बहुत खूब!

विधुल्लता ने कहा…

रंजनाजी,ताउजी,परत्य्क्षाजी,श्रुति ,महेंद्र मिश्रा जी,डॉ फिरोज जी,विनयजी,एस बी सिंह जी,bhai anuraag ji बहादुर पटेल जी, राज भाटिया जी,स्मार्ट इंडियन जी डूबे जी,अक्षयजी ...आप सभी kaa tahe दिल से शुक्रिया,

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

इस कविता को पढ़ते हुए बराबर गुलज़ार जी जेहन में छाये रहे.........और ये कविता समूचे जेहन को गुनगुनाती हुई.........मुझमें से गुज़र कर चली गई....आपको धन्यवाद...!!.. haan mere liye to ye ik kavita hi thi....bolo to gaakar bhi suna doon....!!

Vijay Kumar ने कहा…

कड़ी से कड़ी जोड़ता हुआ कवितायें तलाश करता ,आपके ब्लॉग तक पहुँचा . श्रम व्यर्थ नहीं गया . मेरे मध्य प्रदेश में इतनी रमणीक जगहें हैं देखकर सुखद अनुभूति हुई .गंभीर लेखन के लिए साधुवाद .मुंबई के वीर्रों के लिए एक गीत लिखा है मैंने अपने ब्लॉग पर ,वक्त हो तो पढियेगा