रविवार, 14 दिसंबर 2008

रस्टीशील्ड-गोल्डन पीला गुलमोहर... एक शुरुआत, स्मृति के सुख-दुःख से परे...

अनुभूतियों और शब्दों के बीच खोजते हुए वह अपने को उस शाम करीब छ माह बाद उसी सड़क पर लौटा लाई जो उसकी पसंदीदा भी थी और गवाह भी.सड़क दूर तक खुदी हुई थी ,उसके किनारे ढेरों कंकरीली काली मिटटी पड़ी हुई थी.ना वहां रस्टी शील्ड -पीला गुलमोहर था और ना ही दुरान्ता रिपेन्स की हरे पीले पत्तों की झाडियाँ मौजूद थी जिसमे सितम्बर से दिसम्बर तक भर पूर पीले फूल आतें हैं,धीरे-धीरे पुरानी पत्तियां झडती रहती है नई चमकीली पत्तियां आने तक . और मार्च तक हरी भूरी फलियों से पेड़ लद जाता है जो बाद मैं पेड़ के नीचे बिछ जाती है जिन्हें चुनना अच्छा लगता है ,उस निरापद और निष्टुर रास्ते पर चलते-सुनते शब्द चीत्कारों से अब लगातार मर रहे थे ,पलट कर देखने का मोह छोडा भी तो नही जाता पिछले सब का जायजा लेने का एक मौका ही तो था ,निपट अकेले मैं खासे भरे-पेडों की शाखाओं से गिरते पीले मुरझाये पत्ते हवा के साथ बजते हुए सुनने का,परन्तु पत्ते उतरे,पेडों की नुकीली शाखाएँ बेतरतीब सी आकाश की छाती पर चुभती सी दिखलाई पड़ती ,बस इसीलिए उसे दिसम्बर नही भाता ,रस रूप ,गंध,शब्द और स्पर्श से बंधा मंगल मुहूर्त और उस चेहरे का वैभव जिसके सहारे कोई अँधेरा दरअँधेरा पार करता ,वो ट्रांसपेरेंट हो गया सब कुछ की जिसके पार सेकडों मील दूर तक भी बहुत कुछ देखा जा सकता था,फिर कौन परवाह करता किसी के जीने मरने की ...उसने तो वायदा किया था जो कुछ पाउँगा उसे अकेले नही देखूंगा ,हाथ पकड़ कर तुम्हे भी दिखाउंगा ,किसी तकलीफ से गुजरना -ताकि जिन्दगी को करीब से देखा जाय ,ताकि अपने करीबी लोगों को और अधिक प्यार किया जा सके, कला का सार तत्व उसका निचोड़ जानने ,जीने की एक अच्छी कोशिश,लिखने की शुरुआत ,दुनिया के आम सुख -दुःख से ऊपर उठने को वो सप्रयास सीखने लगे ....उसने फिर भी एक जोरों से साँस ली और भीतर ही भीतर उसकी अद्रश्य पीठ पर सर टिका दिया ..और एक अंगुली से लिखा दुनिया के सबसे गहरे अर्थों वाला शब्द---स्लेटी रंग से उसे चिड थी पर उस सिलेटी शाम का क्या करे,देर रात तक उस खुले अंत का, उसने फिर भी सपना देखा गुलमोहर खिल उठा है जिसके तले वो अपने सेल पर कविता के कुछ शब्दों को सुनते...
"कहानियाँ उस वक्त पैदा होती हैं जब वक्त गुज़र जाता है, लोग जुदा हो जाते हैं, इन्सान बूढा हो जाता है "- पीटर बख्सल - जर्मनी कथाकार।

12 टिप्‍पणियां:

Bahadur Patel ने कहा…

bahut achchha likha apane. badhai.

राज भाटिय़ा ने कहा…

दुनिया के आम सुख -दुःख से ऊपर उठने को वो सप्रयास सीखने लगे ....उसने फिर भी एक जोरों से साँस ली और भीतर ही भीतर उसकी अद्रश्य पीठ पर सर टिका दिया ..
वाह कया बात है ! लेकिन इतना आसन कहां.... बहुत खुब , अगर हम इन सब से छुटकारा पा ले तो बात ही क्या है.
धन्यवाद

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

अच्छा िलखा है आपने । जीवन के सच को प्रभावशाली तरीके से शब्दबद्ध िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है -आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Pratyaksha ने कहा…

एक सुंदर उदासी में नहाई हुई..

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बेहतरीन लिखा आपने !

राम राम !

डॉ .अनुराग ने कहा…

तीत से रोज उलझना ओर कुछ खंगालना .....शायद व्यस्त जीवन से फुर्सत तलाशना है .........

विधुल्लता ने कहा…

bahaurpatelji,rajbhatiyaji,dr ashokpriyranjanji,priy pratyaksha,rampuriyaji,bhai anuraag ji...shukriyaa aap sabhi kaa.

Harshvardhan ने कहा…

bahut achcha likha hai aapne blog me
thanks

shivraj gujar ने कहा…

kafi dino baad aapke blog par aaya. mafi chahta hoon. aaj aaya to gulmohar padkar man khil utha. aap hamesha jindagi ke itane kareeb se vishay uthati hain ki usko padte huye kabhi aisa lagta hi nahi ki hum kuchh pad rahe hain, balki lagta hai ki hum use jee rahe hain.
sadhuvad
mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aate rahen, achha lagta hai.

धीरेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

bahut achhcha likha apne

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरी उदासी से किखा ये ताना-बाना
मन को और उदास कर गया

शायद इसी को लेखनी की सफलता कहते हैं

विधुल्लता ने कहा…

धन्यवाद हर्ष पाण्डेय जी ,शिवराज गुजर जी ,धीरेन्द्र पाण्डेय जी ,और दिगंबर नासवा जी आप सभी और अन्य भी जो मेरे लिखे को इतना धेर्य से पढ़ते हैं प्रक्रति से प्यार आदमी को बहुत कुछ सिखाता है जीवन मैं सुख-दुःख उदासी प्रेम नफरत मुश्किलों सफलता का भी महत्व तो है आपसभी का स्नेह मिलता है तो ..एक गुनगुनी खुशी होती है आभार ...