इमानदारी से जीने के लिए आदमी को कुछ करने को लालायित होना, चाहिए भटकना और गलतियाँ करना शुरू करना चाहिए और फ़िर से छोड़ना चाहिए और निरंतर संघर्ष करना चाहिए। इत्मीनान और चैन तो मानसिक अधमता है। लेव तोल्स्तोय के ये शब्द - हमारे लिए भी बहुत कुछ स्पष्ट करते हैं, जब भी उनकी बात होती है तो उनके विश्व विख्यात उपन्यास- युद्ध और शान्ति, अन्ना कारेनिना और पुनुरुथ्हन के विषय में ही, लेकिन 'कज्जाक' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'आजाद आदमी'। उपन्यास उनके प्रारंभिक उपन्यासों में से हे जो उनके अपने निजी अनुभवों के आधार पर लिखा गया है। १८५१ में २२ वर्ष की उम्र में वे अपने बड़े भाई निकोलाई के साथ 'काकेशिया' गए थे, यहाँ 'तैरक नदी' के पास 'कज्जाक' नामक गाँव में वह लगभग तीन वर्ष तक रहे और काकेशिया में हुई सैनिक कार्यवाही में उन्होंने भाग लिया। उन्होंने ख़ुद लिखा है की - 'अपना सहस परखने और लडाई क्या होती है, देखने के लिए वह यहाँ आए हैं, काकेशिया आकर ही वह लेखक बने।' हालाँकि मोस्को में ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। उनका लघु उपन्यास 'बचपन' था जिसे उन्होंने काकेशिया में ही पूरा किया। उन्ही दिनों पित्तेस्बुर्ग से प्रकाशित होने वाली पत्रिका - 'सोब्रेमिन्नक' के संपादक और रूसी कवि 'निकोलाई नेक्रसो' को जब यह रचना प्रकाशन हेतु मिली वो उससे इतना प्रभावित हुए की इसके लेखक का नाम जाने बिना ही उन्होंने इसे प्रकाशित कर दिया। 'कज्जाक' उपन्यास पर तोल्स्तोय ने १८५२-१८६२ तक काम किया... करीब दस वर्ष। काकेशिया में बिताये वर्षों का उनका अनुभव इसमे प्रतिबिंबित हुआ है। इसमे जन-जीवन का सौन्दर्य और सरलता तथा कुलीन समाज का झूट और पाखंड है। इसका नायक - 'ओलेनिन्न' आत्म-चरित्रात्मक है, जो कुलीन समाज की आलोचना और भर्त्सना करता है, उनसे नाता तोड़ने को भी तैयार है ताकि साधारण लोगो के समीप आ सके, उनका जीवन अपना सके। लेकिन उपन्यास में बांके 'कज्जाक' और 'लुकाश्का', गर्वीली सुंदरी 'मर्मंका' और बुडे शिकारी - 'येरोश्का' और उनके बीच और एक गहरी खाई है जिसे पाटने के सारे प्रयास ओलेनिन्न के व्यर्थ होते जाते हैं। कज्ज़कों के गाँव में ओलेनिन्न परदेसी है, लेकिन एक बात, इस अर्थ में, नायक लेखक से भिन्न है। उन्ही दिनों एक पत्र में उन्होंने लिखा था की काकेशिया में ही उन्होंने जीवन की शिक्षा पायी। सैनिक सेवा के लिए दुसरे स्थान पर जाते हुए अपनी डायरी में लिखा - की काकेशिया से मुझे गहरा अनुराग हो गया है। यह बीहड़ इलाका सचमुच अनुपम है, यहाँ दो विपरीत बातों 'युद्ध और स्वतंत्रता' का विचित्र और काव्यमय संयोजन हुआ है। उसी समय 'कज्जाक' उपन्यास के साथ तोल्स्तोय के लेखन कार्य का पहला दशक पूरा हुआ था। उनके स्रजन में यह उपन्यास एक सीम का महत्व रखता है और फ़िर बाद में विश्व विख्यात उपन्यासों का सिलसिला शुरू हुआ।
यह उपन्यास करीब पंद्रह वर्ष पूर्व पढ़ा था, और हाल ही में दोबारा, जिसे माँ ने उपहार में दिया था। मुझे लगता है कज्जाक को पढ़े बिना तोल्स्तोय को जानना अधुरा होगा।
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6 टिप्पणियां:
जब भी इस महान लेखक पर बात होती है, अक्सर यह उपन्यास भुला दिया जाता है। आपने भुले हुए उपन्यास के बारे में फिर से आत्मीय रूप से लिखा इसके लिए शुक्रिया।
कज्जाक को पढ़े बिना तोल्स्तोय को जानना अधुरा होगा....
आपके विचारो से सहमत हूँ . सुंदर जानकारीपूर्ण आलेख .धन्यवाद.
कज्जाक को पढ़े बिना तोल्स्तोय को जानना अधुरा होगा....
आपके विचारो से सहमत हूँ . सुंदर जानकारीपूर्ण आलेख .धन्यवाद.
तोल्स्तोय का कज्जाक नहीं पढ़ सका हूँ पढने का यत्न करूंगा। हाँ इसी शीर्षक से एक लघु उपन्यास गोगोल का है और वह एक अद्भुत रचना है।
आप सभी का आभार...
बहुत् ही सुन्दर
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