शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

शालमल्ली अब फूल नहीं बेचती..


शालमल्ली अब फूल नहीं बेचती...


शालमल्ली एक जादुई सच थी, पाँच पैबंद का एक गाम्ठी लहंगा पहने

जिसपर खुशबुएँ निर्बाध तैरती थी, जो अब ठिठुरेगी इस शीत मैं...

घास की ताजा पत्तियों की नियति में, उसकी उदासी मैं जज्ब हो गई है,

सितारों की राख; आसमान की स्याही जो बनती है गवाह, लिखती है - "ऐ खुदा!"

वो सब रद्द किया जाए, कहा-सुना माफ़ और विलोपित। मुड़कर देखा गया भी

गोपीनाथ बारदोलाई मार्ग से जब गुजरा था एक घुड़सवार ; हाथों में चाबुक,

आखों में प्रेम, मन में उत्ताप लिए कई बार...

शालमल्ली दौडी थी उसके पीछे हर बार , फूलों का एक गुच्छा लिए।

पिछले दिनों दिल्ली बम-धमाकों के बाद, शिनाख्त के लिए उसे बुलाया गया

उस घुड़सवार , डॉन जूआन के पैरों तले शालमल्ली का हाथ था,

लिली, मुंडासा, दहेलिया, चंपा के नीले-पीले-जामुनी और गुलाबी

मुरझाये फूलों का गुच्छा, और बंद हथेलियों में चाबुक के निशान।

पूरी शिष्टता और संजीदगी से उसने उसके विक्षत, हाथ विहीन शव को पहचान लिया।

एक संवाद टूट गया।

मृत्यु की अनेक कहानियो की तरह,

शालमल्ली अब वहां फूल नहीं बेचती।

राजमार्ग पर प्रवेश निषेध है,

उसका सनातन प्रेमी अब मूर्तिकार बन गया है-

जो अब शाल्भंजिकाएं बेचता है...

4 टिप्‍पणियां:

ambrish kumar ने कहा…

man ko cho lene vali

बेनामी ने कहा…

shaalmalli ko aap pahchanti hain kya? BAHUT KHOOB.

Unknown ने कहा…

shaalmalli delhi bam-dhamakon main mari gayi...
itni sukshm sanvednaon ke liye dhanyavad! :)

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

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