tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post4525780215647892407..comments2023-10-03T08:14:01.037-07:00Comments on ताना-बाना: मुख्त्सिर सी बात हैविधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-86805371354089997602012-07-08T02:56:46.361-07:002012-07-08T02:56:46.361-07:00aap sabhi kaa dhanyvaadaap sabhi kaa dhanyvaadविधुल्लताhttps://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-44912201207212083782012-05-22T16:22:35.764-07:002012-05-22T16:22:35.764-07:00इस पोस्ट को दोबारा पढ़ रही हूं दो सप्ताह पहले कुछः ...इस पोस्ट को दोबारा पढ़ रही हूं दो सप्ताह पहले कुछः कहते नहीं बना था सिर्फ सोचती रही थी तहों से निकलने की कोशिश करती हुई और आज भी यही हुआ गहराइयों में डूब कर निकलते नहीं बन रहा... आँखों से नहीं आपको फुर्सत और भीतर से पढ़ा जाता है....neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-74094135598644820072012-05-16T00:47:06.082-07:002012-05-16T00:47:06.082-07:00यहूदियों की कहावत कारगार साबित होगी ईश्वर के सामन...यहूदियों की कहावत कारगार साबित होगी ईश्वर के सामने रोओ ओर मनुष्य के सामने हंसो पर कैसे -किस तरतीब से ..."आपका लिखा हुआ हमेशा दिल को झंझोर जाता है ...लाजवाब ....रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-50497411694547014702012-04-22T08:07:28.757-07:002012-04-22T08:07:28.757-07:00वाह !!!!!! बहुत बढ़िया प्रभावित करती सुंदर प्रस्तुत...वाह !!!!!! बहुत बढ़िया प्रभावित करती सुंदर प्रस्तुति,..विधु जी <br /><br />MY RECENT POST...<a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2012/04/dheerendradheer.html" rel="nofollow">काव्यान्जलि ...:गजल...</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-54136999030695956592012-04-21T12:05:43.910-07:002012-04-21T12:05:43.910-07:00..,उसकी सोच बस किसी नदी के गहरे जीवन में उतर जाने .....,उसकी सोच बस किसी नदी के गहरे जीवन में उतर जाने की मानिंद ...उतरती ही जाती है ..तारांकित प्रश्नों के जवाब भी नहीं मिलते उसका कसूर नहीं .. जो उसके संज्ञान में ही नहीं ...दिल्ली की वो शाम दिल में उतरती है ... ''.वो अपनी आँखों में समुद्र भरकर आती है..ओर हँसते हुए बूँद भर रोती है<br />behatariin prastutivikram7https://www.blogger.com/profile/06934659997126288946noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-51366522493902543212012-04-05T04:16:13.674-07:002012-04-05T04:16:13.674-07:00मुसीबत जदा वक्त से बाहर आने में कितनी मुश्किल हुई ...मुसीबत जदा वक्त से बाहर आने में कितनी मुश्किल हुई होगी अब उसे कौन बताये...भीतर कोई शीशा चकनाचूर होता है उसे आवाज तक सुनाई नहीं देती ...<br /><br />bahut mushkil..bahut vaqt lagta hay..<br /><br />वो अपनी आँखों में समुद्र भरकर आती है..ओर हँसते हुए बूँद भर रोती है<br /><br />phir padhungi laut kar ise..पारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-41849987686247988002012-04-05T01:46:15.592-07:002012-04-05T01:46:15.592-07:00ये सही है अनुराग जी जीवन में बहुत कुछ अकथ ही रह जा...ये सही है अनुराग जी जीवन में बहुत कुछ अकथ ही रह जाता है कभी गहरा ओर कभी उथला..ओर हंसी भी आंसू भी ...बहुत पहले एक कहानी लिखी थी हिन्दुस्तान में <br />''अपरिमेय शीर्षक से ..ये उसी की अगली कड़ी के रूप में है ...चाहे हुए की सोच ओर सोचे हुए की चाह में में बुनियादी फर्क नहीं पर<br />ये भी सही है की सब कुछ आपकी गिरफ्त में नहीं होता समय तो बिलकुल नहीं ..हवा पानी आग मिटटी से बना ये शरीर कितने ओर कहाँ-कहाँ नहीं देता दुःख ...ओर आत्मा कितने सारे ताप झेल जाती है एक ही समय में ...खैर आपकी टिप्पणी सुकून देती है ...लिखा सार्थक लगता है धन्यवादविधुल्लताhttps://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-68651888363035045372012-04-04T10:11:59.006-07:002012-04-04T10:11:59.006-07:00डूबा हूँ उतरा हूँ कई शब्दों को चाहा फ्रीज़ कर दूँ....डूबा हूँ उतरा हूँ कई शब्दों को चाहा फ्रीज़ कर दूँ....हाईलाईट कर दूँ ...बोल्ड भी पर कितने<br />"बाहरी दुनिया से टूटा ये रिश्ता अकथ की गहरे के दो छोर बन जाते हेँ, "<br />या ये<br />कभी ख़त्म ना होने वाली हंसी. वो भी कहना चाहती है,चहकना चाहती..हंसना चाहती है .उस लड़की की तरह..हंसना... लेकिन एक मुहाने पर आकर रूक जाता है<br /><br />ओर ये मुझे जैसे किसी की चीख सा मालूम पड़ता है<br />"..लगातार जमते हुए तलछत्त में जमते ही जाना..अँधेरे का काला घोल उसकी आवाज में जम जाता है शब्दों में धवनि भी नहीं बस पल-पल बीतता है अपने पूरे पन के साथ क्या यहूदियों की कहावत कारगार साबित होगी इश्वर के सामने रोओ ओर मनुष्य के सामने हंसो पर कैसे -किस तरतीब से ..."<br />कितने सूत्र छिपे है इस कहानी में<br />वो आँखों ही आँखों से लापरवाह बने रहने का भ्रम फैलाना चाहता है ..ओर वो ..वो अन्दर ही अन्दर सतर्क रह कर अपने समर्थन में बुलंद होना चाहती है<br />ओर ये मुझे कहानी नहीं लगता ,लगता है किसी जाने पहचाने ने कहा है<br />''.वो अपनी आँखों में समुद्र भरकर आती है..ओर हँसते हुए बूँद भर रोती हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-54252551100488005552012-04-04T09:44:21.420-07:002012-04-04T09:44:21.420-07:00अच्छी है...अच्छी है...Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com