tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post4346798891930856320..comments2023-10-03T08:14:01.037-07:00Comments on ताना-बाना: अजरा तुम जहाँ हो...विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-45101820392811403922008-10-21T22:39:00.000-07:002008-10-21T22:39:00.000-07:00सिर्फ़ कांच की किरचों को उठाते मैं बेहाल हो जाती ह...सिर्फ़ कांच की किरचों को उठाते मैं बेहाल हो जाती हूँ... <BR/>---<BR/>कांच की खूबसूरती और चमक के परे ये किरचें किस कदर हैरान परेशान रखती हैं ,कईं कईं दिन बाद तक कोई न कोई महीन कांच कभी किसी कुर्सी या तख्त के पाये के पीछे से घर को बुहारते हुए निकल आता है और चुभ जाए तो ...सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.com