tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post2092816964295885809..comments2023-10-03T08:14:01.037-07:00Comments on ताना-बाना: बांधो ना नाव इस ठौर बन्धु...विधुल्लताhttp://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-35975873899084109242008-11-05T03:47:00.000-08:002008-11-05T03:47:00.000-08:00एक विचारोत्तेजक पोस्ट। आईने के सामने आईना रखती हुई...एक विचारोत्तेजक पोस्ट। आईने के सामने आईना रखती हुई...ravindra vyashttps://www.blogger.com/profile/14064584813872136888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5392488104210645802.post-35003774555451667812008-11-05T00:39:00.000-08:002008-11-05T00:39:00.000-08:00हमारी यादों में बचपन के भय मौजूद रहते हैं, ज़िन्दग...हमारी यादों में बचपन के भय मौजूद रहते हैं, ज़िन्दगी उदास घाटी में बेकाबू हो जाती है। पहाडों के पार से गूंजती आवाजें इस कलिकाल में किसी अपने-अपनों के अंतस में उतर जाने की आकांछा दम तोड़ देती है। रिश्ते टूटने, खोने और उन्हें बचाने की कशमकश में कुछ नायाब इच्छाएं बीच-बीच में सर उठती है। दूसरो की खुशी में अपनी खुशी हांसिल होना , पाना और हर कहे को सर- माथे पर रखना हमेशा तो नहीं हो सकता ना? फ़िर कभी ना मीठे में तब्दील होने वाली कड़वाहट! क्योंकि मैं स्त्री हूँ, क्यों नहीं मान लेते आप- मेरा स्त्री होना एक जैविक बोध ही नहीं बल्कि सामाजिक बोध भी है और मनुष्य होने के नाते, मैं भी वो सब कर सकती हूँ जो आप सब कह/कर पातें हैं...<BR/><BR/><BR/><BR/>शब्द की लय....जैसे बहुत कुछ कह जाती है....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.com